किसानों और संसद के लिए आज दिन है ‘काला दिवस’: सांसद दीपेंद्र हुड्डा

चंडीगढ़। प्रदेश के इकलौते विपक्षी सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने आज के दिन को किसानों और संसद के लिए काला दिवस करार दिया है। उनका कहना है कि किसानों की आपत्तियों को नजअंदाज कर, विपक्ष की आवाज को दबाते हुए बिना वोटिंग से राज्यसभा में किसान विरोधी काले कानूनों का पास होना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।

Today is black day for farmers and Parliament: Deepender Hooda

Chandigarh. The only opposition MP of the state Deepender Singh Hooda has described this day as a black day for farmers and Parliament. He says it is very unfortunate to pass anti-farmer black laws in the Rajya Sabha by voting without ignoring the objections of the farmers and suppressing the voice of the opposition.

कोरोना संक्रमित दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने अस्पताल से एक वीडियो संदेश जारी करके इन कानूनों के खिलाफ विरोध जाहिर किया है। सांसद ने कहा कि उन्हें इस बात की टीस है कि वो संसद के पटल पर तर्कसंगत तरीके से अपनी बात सरकार के कानों तक नहीं पहुंचा सके। इसलिए वो सोशल मीडिया और प्रेस नोट के माध्यम से अपना विरोध दर्ज करवा रहे हैं।

सांसद दीपेंद्र ने कहा कि हालांकि उनकी सेहत में सुधार है, लेकिन दुर्भाग्यवश आज उनकी दूसरी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई, जिसकी वजह से वो संसद की चर्चा में प्रत्यक्ष रुप से शामिल नहीं हो पाए, लेकिन वो उम्मीद करते हैं कि लोगों की दुआ से तीसरे कृषि संबंधित विधेयक पर सदन में चर्चा से पहले वे कोरोना नेगेटिव व पूर्ण रूप से स्वस्थ होकर प्रत्यक्ष रूप से संसद में जा पाएंगे।

दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि आज पारित दो कानूनों से सिर्फ किसान ही नहीं, बल्कि आढ़ती समेत हर उस गरीब आदमी को भी बड़ा नुकसान होगा, जिसे राशन कार्ड पर आटा, अनाज और दाल आदि मिलते हैं। नए कानून किसान पर थोपकर, न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली और मंडी व्यवस्था को कमजोर करने के बाद स्वाभाविक रूप से सरकार का अगला प्रहार सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर होने जा रहा है। इस प्रणाली के तहत करोड़ों राशन कार्ड धारक गरीबों को लाभ मिलता है। सरकार ने इस साल सरकारी खरीद एजेंसी एफसीआई का बजट कम करके इसका स्पष्ट संकेत भी दे दिया है। स्पष्ट है कि सरकार धीरे-धीरे सरकारी खरीद से अपने हाथ खींच रही है और फसल खरीद की बड़ी जिम्मेदारी पूंजीपतियों को सौंपने जा रही है। अगर प्राइवेट कंपनियां ही बड़ी मात्रा में किसान की फसल खरीदेंगी, तो वो गरीब परिवारों को राशन कैसे और क्यों बाटेंगी? क्या गरीबों से “राइट टू फूड” का हक छीन लिया जाएगा?

दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि आज दो कानूनों को राज्यसभा में सरकार ने धक्केशाही से जल्दबाजी में पारित करवाया है। लोकतांत्रिक व्यवस्था इसकी इजाजत नहीं देती। सरकार इन फैसलों को लेकर लगातार ऐसा रवैया अपना रही है। इससे पहले इन कानूनों को बिना किसी से सलाह और चर्चा के चोरी छिपे कोरोना काल में अध्यादेश के जरिए किसानों पर थोपा गया और अब बिना वोटिंग के इन्हें पास कर दिया गया।  देश और प्रदेश के किसान मांग कर रहे थे कि सरकार अपने वादे के मुताबिक स्वामीनाथन आयोग के सी2 फार्मूले के तहत उन्हें एमएसपी दे, लेकिन सरकार इसे विपरीत बिना एमएसपी प्रावधान के कानून ले लाई। आखिर इसके लिए किसने मांग की थी- किसानों ने या पूंजीपति घरानों ने?

सांसद दीपेंद्र ने कहा कि सरकार बार-बार दावा कर रही है कि इन कानूनों से एमएसपी पर असर नहीं पड़ेगा। अगर ऐसा है तो सरकार मंडियों के बाहर होने वाली खरीद पर डैच् की गारंटी दिलवाने से क्यों इंकार कर रही है? एमएसपी से कम खरीद करने वालों के खिलाफ सजा का प्रावधान क्यों नहीं किया गया? नए कानून कहते हैं कि अब किसान पूरे देश में कहीं भी अपनी फसल बेच सकता है। वहीं दूसरी तरफ हरियाणा सरकार मेरी फसल मेरा ब्यौरा के तहत दूसरे राज्यों की फसल को हरियाणा में आने से रोकने का नियम बनाती है। नए कानून आने के बाद भी हरियाणा के मुख्यमंत्री कहते हैं कि वो दूसरे राज्यों की मक्का और बजरा को हरियाणा में नहीं बिकने देंगे। आखिर हरियाणा सरकार के स्टैंड और नए कानूनों में इतना अंतरविरोध क्यों है? अगर पूरे देश में ओपेन मार्किट सिस्टम होगा, तो हरियाणा-पंजाब के अपनी धान, गेहूं, चावल, गन्ना, कपास, सरसों, बाजरा बेचने के लिए किस राज्य में जाएंगे, जहां उसे अपने राज्यों से भी ज्यादा रेट मिल पाएगा? अगर दूसरे राज्यों से सस्ती फसले हरियाणा पंजाब में आकर बिकेंगी, तो हमारे किसान कहां जाएंगे?

इसी प्रकार दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने सरकार से पूछा कि जमाखोरी पर प्रतिबंध हटाने का फायदा किसको होगाए किसान को या जमाखोर को? जमाखोरी को कानूनी मान्यता देने बाद किसान से सस्ता लेकर जमाखोर आम उपभोक्ता को कालाबाजारी करके मंहगा बेचने का काम करेंगे। सरकार नए कानूनों के जरिए बिचौलियों को हटाने का दावा कर रही है, लेकिन फसल खरीद करने या उससे कॉन्ट्रेक्ट करने वाली प्राइवेट एजेंसी, अडानी या अंबानी को सरकार किस श्रेणी में रखती है- उत्पादक, उपभोक्ता या बिचौलिया? अगर बड़ी प्राइवेट कंपनियां किसान से ठेके पर जमीन लेकर बड़े स्तर कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग करेंगी तो गांवों में ठेके या पट्टे पर जमीन लेकर खेती करने वाले करोड़ों छोटे किसानों का क्या होगा? सरकार जिन आढ़तियों को खत्म करना चाहती है वो तो किसान की पहुंच के अंदर है, लेकिन किसान अदानी-अंबानी को तक कैसे पहुंचेंगे? अगर कंपनियां किसान की फसल का भुगतान समय पर नहीं करेंगी, फसल नहीं खरीदेंगी या कोई वादाखिलाफी करेंगी तो किसान बड़े उद्योगपतियों को कहां ढूंढेंगे?

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