इस बार नहीं लगेगा राजस्थान का गोगामेड़ी मेला

चंडीगढ़। राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में अगस्त 2020 में प्रस्तावित गोगामेड़ी मेला को कोविड-19 के दृष्टिगत स्थगित कर दिया गया है। इस बारे में राजस्थान सरकार की ओर से हरियाणा सरकार को सूचना भेजी गई है। ताकि इस मेला में जाने के इच्छुक श्रद्धालुओं को परेशानी का सामना न करना पड़े।

Rajasthan’s Gogamedi fair will not be held this time

Chandigarh. The proposed Gogamedi Mela in Hanumangarh district of Rajasthan in August 2020 has been postponed in view of Kovid-19. Information about this has been sent to the Haryana Government by the Government of Rajasthan. So that devotees desirous of going to this fair do not have to face trouble.

एक सरकारी प्रवक्ता ने बताया कि राजस्थान के गोगाजी मंदिर (तहसील नोहर, जिला हनुमानगढ़) में प्रतिवर्ष गोगामेड़ी का मेला आयोजित किया जाता है, जिसमें आस-पास के राज्यों से भी लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं।

इस बार यह मेला अगले माह अगस्त में प्रस्तावित था।

राजस्थान सरकार ने कोविड-19 से उत्पन्न परिस्थितियों के मद्देनजर श्रद्धालुओं के स्वास्थ्य की सुरक्षा को ध्यान में रखकर गोगामेड़ी मेला को स्थगित कर दिया है।

जानें क्यों लगता है यह मेला

इतिहास के पन्ने लोगों के जहन से भले ही धुंधले हो जाए, लेकिन सैकड़ों बरस पुरानी मान्यताऐं आज भी चिरस्थायी ही हैं।

समय के साथ जीवन शैली में भले ही आमूलचूल बदलाव आ गया हो, लेकिन कुछ मान्यताएं आज भी उसी रूप में निभाई रही हैं, जैसी वे पहले निभाई जाती थी।

ऐसी ही मान्यताओं और आस्था का मेला है चूरू में लगने वाला जाहर वीर गोगाजी का मेला।

इस मेले में आज भी लोग जहरीले जीवों को गले में लटकाकर आते हैं।

जिस सांप या गौह (गोयरा) को देखकर आम इंसान की कंपकंपी छूट जाती है, उन्हीं जीवों के फन और मुंह को गोगाजी के भक्त अपने मुंह में लेने से तनिक भी नहीं हिचकते हैं।

चूरू जिला मुख्यालय पर जाहर वीर गोगाजी मेले में आस्था, मान्यता और विश्वास का संगम देखने को मिलता है।

हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक लोक देवता जाहर वीर गोगाजी के जन्मोत्सव पर जिला मुख्यालय स्थित प्राचीन गोगामेड़ी में वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता है।

गोगा भक्त गोगाजी को रिझाने के लिए विभिन्न प्रजातियों के जहरीले सांप और गौह को हाथों में लिए ढोल-झींझे की धुन पर नृत्य करते हुए मन्दिर पहुंचते हैं और श्रृद्धापूर्वक गोगाजी के समक्ष अपना शीश नवाते हैं।

 

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