हरियाणाः कांग्रेस का संगठन तक नहीं, सपने ले रहे सत्ता के

चंडीगढ़। पिछले छह साल से हरियाणा की सत्ता से आउट चल रही कांग्रेस जहां प्रदेश में दोबारा सत्तासीन होने के सपने देख रही है। वहीं विपक्ष में रहने के बावजूद पिछले छह साल से पार्टी बगैर संगठन के ही चल रही है। वरिष्ठ नेताओं की आपसी गुटबाजी के चलते अभी तक ब्लाक व जिला अध्यक्षों की नियुक्तियां नहीं हो सकी है। निकट भविष्य में भी इन नियुक्तियों की कोई संभावना नहीं है। लिहाजा यह तय माना जा रहा है कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव की तर्ज पर बरौदा उपचुनाव भी कांग्रेस पार्टी बगैर संगठन के ही लड़ेगी।

Haryana: Congress don’t hav even organization, dreams for power

Chandigarh For the last six years, the Congress, which has been out of power in Haryana, is dreaming of being in power again in the state. Despite being in opposition, the party has been running without organization for the last six years. Due to mutual factionalism of senior leaders, appointments of blocks and district presidents have not been made yet. There is no possibility of these appointments even in the near future. Therefore, it is believed that the Baroda by-election will be fought on the lines of the assembly and Lok Sabha elections without the organization of the Congress party.

प्रदेश कांग्रेस में पिछले साल बदलाव भले ही हो गया हो, लेकिन गुटबाजी अभी भी खत्म नहीं हुई है।

फर्क सिर्फ इतना है कि तंवर कार्यकाल के दौरान कांग्रेसियों में खुलेआम जूतम पैजार होती थी। अब यह लड़ाई पर्दे के पीछे से चल रही है।

अशोक तंवर ने प्रदेश कांग्रेस की कमान 14 फरवरी, 2014 को संभाली थी।

उस समय राज्य में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में कांग्रेस का राज था।

तंवर ने प्रदेशाध्यक्ष बनने दो-तीन माह बाद ही प्रदेश, जिला व ब्लाक कार्यकारिणी को भंग कर दिया था।

वे खुद की टीम खड़ी करना चाहते थे, लेकिन नहीं कर सके।

2014 के लोकसभा और उसी वर्ष हुए विधानसभा चुनावों में पार्टी को करारी हार का मुंह देखना पड़ा।

इसके बाद 2019 में हुए जींद उपचुनाव और पांच नगर निगमोंयमुनानगर, करनाल, पानीपत, रोहतक व हिसार में हुए मेयर के सीधे चुनावों में भी कांग्रेस को शिकस्त खानी पड़ी।

हुड्डा व तंवर गुट के बीच कई बार मारपीट भी हुई।

4 सितंबर, 2019 को तंवर की जगह प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा ने संभाली।

इससे पहले 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस सभी 10 सीटों पर चुनाव हारी।

सितंबर-2019 में पार्टी की कमान संभालने के बाद सैलजा के नेतृत्व में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस 31 सीटों पर पहुंची।

इस अवधि में पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी विपक्ष के नेता बन चुके थे।

पार्टी के मौजूदा 30 विधायकों में से 25 विधायकों को हुड्डा कैम्प में गिना जाता है।

सैलजा की अध्यक्षता कार्यकाल में हुए दो चुनावों में उन्होंने काम चलाने के लिए मुट्ठी भर नियुक्तियां करके अपना काम शुरू कर दिया।

हुड्डा और सैलजा

सूत्रों का कहना है कि विधानसभा चुनावों में टिकट वितरण के दौरान ही सैलजा और हुड्डा में दूरियां बढ़नी शुरू हो गई थी।

इसके बाद राज्यसभा चुनाव ने विवाद की खाई को और गहरा कर दिया।

अब जिला और ब्लाक अध्यक्षों के चयन को लेकर भी दोनों नेताओं की पसंद-नापसंद आड़े आ रही है।

कार्यकर्ता परेशान

पार्टी के हरियाणा मामलों के प्रभारी गुलाम नबी आजाद भी दो बार ऐलान कर चुके हैं कि जल्द ही जिला व ब्लाक कार्यकारिणी का गठन होगा लेकिन अब वह भी पूरी तरह से शांत बैठ चुके हैं।

भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी सैलजा, किरण चौधरी, कुलदीप बिश्नोई, अजय यादव, रणदीप सुरजेवाला सरीखे तमाम नेताओं की राहें अलग होने का खामियाजा सामान्य कार्यकर्ता भुगत रहे हैं।

मिलकर लड़ेंगे

हरियाणा कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कुमारी सैलजा के अनुसार कांग्रेस लोकतांत्रिक पार्टी है। इसमें हर किसी को अपनी बात रखने का अधिकार है। पार्टी में किसी तरह की गुटबाजी नहीं है। बरोदा उपचुनाव भी हम सभी मिलकर लड़ेंगे और जीतेंगे। जिला व ब्लाक कार्यकारिणी के गठन को लेकर मंथन चल रहा है। जल्द ही जिला व ब्लाक के अलावा प्रदेश कार्यकारिणी का गठन होगा।

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